इस दुनिया में हमारे कई रिश्ते बनते हैं। कुछ रिश्ते जन्म से हमारे साथ होते हैं और कुछ हम खुद बनाते हैं। ऐसे रिश्ते में से एक रिश्ता सच्ची मित्रता का होता है। हमारी जान पहचान अपने मोहल्ले, विद्यालय तथा समाज में अनेक लोगों से होती रहती है। इनमें से कुछ हमारे बराबर के होते हैं, कुछ बड़े और कुछ हमसे छोटे।
परंतु इनमें से हमें अपनी उम्र के लोग अधिक अच्छे लगते हैं क्योंकि वह हमें अपने जैसा ही लगते हैं। समान आयु होने के कारण उनसे बातें करने में आनंद आता है। खेलों का मजा दुगना हो जाता है। उनके साथ उठना-बैठना, आना-जाना, गप्पे लड़ाना अच्छा लगता है।
बराबर के ऐसे व्यक्तियों के साथ अधिक समय बिताना, मन की बातें बताना और सुनने के कारण ऐसा लगता है कि वह अपना है, उस पर विश्वास किया जा सकता है। उसे धोखा नहीं मिलेगा। किसी के सामने अपमान नहीं करेगा और हर जगह सम्मान देगा। बार-बार दिल को ऐसा लगेगा कि में जितना इसे चाहता हूं, इसका विश्वास करता हूं, उतना ही है यह भी मुझे चाहता है और मेरा विश्वास करता है। हम दोनों एक आत्मा दो शरीर है तो उसको मित्रता कहते हैं।
सच्ची मित्रता का भी यही अर्थ है कि बराबर के दो व्यक्तियों में चाहे वह बालक हैं, युवक हैं, स्त्री या पुरुष है दोनों एक दूसरे पर विश्वास करते हैं। दोनों के बीच स्वार्थ का व्यवहार नहीं होता है। आपस में झूठ बोलकर एक दूसरे को ठगते नहीं है। हमेशा एक दूसरे का साथ देने के लिए अपना तन-मन-धन कुर्बान कर देते हैं।
लोग उनकी मित्रता का उदाहरण देते हैं। वे एक दूसरे के घरवालों, रिश्तेदारों का सम्मान करते हैं, सहायता करते हैं। एक सच्चा मित्र हमेशा अपने दोस्त का विश्वास करता है। कृष्ण और सुदामा का उदाहरण हमारे सामने है। अंत में कहना चाहता हूं चाहता कि सच्ची मित्रता में शिक्षा, धन-दौलत, अमीर-गरीब, जात-पात आड़े नहीं आती। सच्चा मित्र वही होता है जो आपके व्यक्तित्व और विचारों को देखकर आपसे मित्रता करता है।
धन्यवाद