माननीय अध्यक्ष महोदय , गुरुजनों और मेरे प्रिय साथियों!
मेरे लिए आज अति प्रसन्नता और गर्व का अवसर है कि मुझे आपके सामने सत्संगति के महत्व जैसे महत्वपूर्ण
विषय पर अपने विचार अभिव्यक्त करने का अवसर मिल रहा है। आशा है कि आप मेरे विचारों को ध्यानपूर्वक सुनकर मुझे अनुगृहीत करेंगे।
मित्रों! मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, इसलिए समाज के बिना नहीं रह सकता। समाज में रहने के कारण वह किसी न किसी की संगत ज़रूर करेगा। यदि संगत अच्छी है तो वह गुणवान होगा और यदि कुसंगत है तो उसमें कई बुराइयां होंगी।
संगति दो प्रकार की होती है। इनमें पहली है सत्संग अर्थात् अच्छे लोगों की संगत तथा दूसरी है कुसंगत अर्थात् बुरे लोगों की संगत। अच्छे लोगों की संगत से जहाँ मान-सम्मान में बढ़ोतरी होती है वहीं वह उन्नति भी दिलाती है।
कोई भी व्यक्ति जन्म से बुरा नहीं होता। वह समाज में रहकर ही भला या बुरा बनता है। जन्म के बाद से बच्चा तीन-चार वर्ष की आयु तक ज़्यादातर समय घर में ही रहता है। इसलिए इस दौरान वह अपने माता-पिता तथा परिवार के अन्य सदस्यों से काफ़ी कुछ सीखता है।
उसके माता-पिता के जैसे संस्कार होंगे वह वैसे ग्रहण करेगा। इसके बाद वह घर से बाहर निकलने लगता है और समाज से काफ़ी कुछ सीखता है। अच्छी संगत सच्चरित्रता का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
साथियों! सत्संगति का महत्व बताते हुए गुरु गोविंद सिंह जी ने कहा है -
जो साधुन सारणी परे तिनके कथन विचार
दंत जीभ जिमी राखि है, दुष्ट अरिष्ट संहार
अर्थात् जो लोग सज्जनों की छत्रछाया में रहते हैं उन्हें किसी प्रकार की चिंता करने की आवश्यकता नहीं। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा है कि जैसे दाँतों से घिरी जीभ सुरक्षित रहती है उसी प्रकार गुरुभक्त लोग भी दुष्टों और दुर्भाग्य से काफ़ी दूर रहते हैं।
सत्संगति वाला व्यक्ति चरित्रवान होता है। अवगुणों की तरफ़ वह कभी नहीं मुड़ता है। चरित्र की श्रेष्ठता ही उसे श्रेष्ठता प्रदान करती है। सत्संगति पाकर वह अपने जीवन को आदर्श बना लेता है तथा सुख, शांति और संतोष से जीता है। संसार का सारा सुख और वैभव उसे प्राप्त होता है। उसके संपर्क में आकर बुरा भी अच्छा बनने का प्रयत्न करता है।
सत्संगति वाले व्यक्ति का जीवन चंदन के वृक्ष के समान होता है। इस वृक्ष की सुगंध में साँप या विषधर उससे लिपटे रहते हैं लेकिन चंदन का वृक्ष अपनी सुगंध नहीं छोड़ता। इसी प्रकार कुसंगति वाले व्यक्ति सत्संगति वाले का कुछ भी नुकसान नहीं कर सकते। सत्संगति वाला व्यक्ति स्वयं अपने परिवार, समाज तथा राष्ट्र की एक अमूल्यवान संपत्ति होता है। वह सभी को लाभ पहुँचाता है। कहा भी गया है कि सत्संग पाप, ताप और दैत्य का तत्काल नाश कर देता है।
सत्संगति साधु तथा सज्जनों की संगति है, जो हर प्रकार वंदनीय तथा गुणों की खान होते हैं, जो अवगुणों को सदगुणों में बदलते हैं। वे समाज के उत्तम प्रकृति के व्यक्ति होते हैं जिन पर समाज श्रद्धा रखता है। हमें सत्संगति दो प्रकार से मिल सकती है। प्रथम, सज्जन तथा साधु पुरुषों के संपर्क से तथा दूसरी अच्छी पुस्तकों से। दोनों प्रकार की संगति से कोई भी मनुष्य विवेकी , ज्ञानी तथा चरित्रवान बन सकता है।
मित्रों! एक प्रसिद्ध कहावत है कि ख़रबूज़े को देखकर ख़रबूज़ा रंग बदलता है अर्थात् संगति अपना प्रभाव अवश्य दिखाती है। पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है। संगति के प्रभाव से ही मनुष्य क्षुद्र अथवा महान् बनता है। इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं जब कुख्यात डाकू रत्नाकर, अंगुलिमाल, वाल्मीकि आदि का जीवन सत्संगति के प्रभाव से बदल गया। अतः जीवन में सत्संगति का महत्वपूर्ण स्थान है।
साथियों! मैंने आपका बहुमूल्य समय लिया है, पर मुझे आशा है कि आपने मेरी बात ध्यान से सुनो। मैं इसके लिए आप सभी का आभार मानता हूं।
धन्यवाद!